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Monday, August 28, 2023

विधायक (एमएलए) के दावेदार!!

 #TheUdai - 26
29 अगस्त 2023
✍दिलीप कुमार उदय
व्यंग्यात्मक अल्फाज प्रस्तुत है :-

विधायक (एमएलए) के दावेदार!!

कोन किस पार्टी से कर रहे है दावेदारी किसको मिलेगा टिकट आदि चर्चाओ का बाजार गर्म होने की कगार पर आ चुका है!!

विधानसभा के चुनाव की तारीख जैसे -जैसे नजदीक आ रही है वैसे वैसे विधायक बनने की तम्मना दिल मे संजोये रखने वाले एवं  राजनीति के क्षेत्र में अपना करियर चुनने एवं समाज सेवा करने की प्रबल इच्छा प्रकट करने वाले भावी विधायक एवं प्रत्याशीजनों को नमस्कार 🙏एवं अग्रिम शुभकामनाएं।😊💐

विधायक बनकर अपने क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने का जज्बा रखने वाले ऐसे तमाम लोग विधायक बनने के प्रबल दावेदार है!! पर सोचनीय विषय यह है कि क्या दावेदार सिर्फ पूर्व विधायक, पूर्व में हारे हुए विधायक, हारे हुए पूर्व प्रत्याशी, खुद को शीर्ष नेता के दाएं हाथ- बाएं हाथ कहलवाने वाले, किसी जाति धर्म के विशेष नेता एवं स्वयंभू नेता या किसी पार्टी में विशेष पद पर विराजित लोग ही दावेदार हो सकते है?? कोई किसी पार्टी का समान्य सदस्य या आमजन यह सपना नही देख सकता ??😌😌

बेशक सपने देखने भी चाहिए और सपने को साकार करने के प्रयत्न भी करने चाहिए.......

पार्टीया टिकट नही देती है तो निर्दलीय के तोर पर भी प्रयास करने चाहिए। 

विधानसभा क्षेत्रो में जाति धर्म के बाहुल्य के तौर पर कब तक आमजन को गुमराह किया जाएगा..... फला जाति के इतने प्रतिशत वोट शेयर है तो प्रबल दावेदार फला जाति का ही होगा! यह मानसिकता आमजन के दिल दिमाग मे  बिठा दी गई है।

प्रत्याशी की योग्यता, व्यक्तित्व, संवैधानिक सोच एवं उसके विजन से ज्यादा उसकी जाति एवं उसके धर्म की बात की जाती है।

क्या किसी क्षेत्र में जाति विशेष के बाहुल्यता के अनुसार पार्टियां अपनी टिकट वितरण प्रणाली बनाती है ?? यदि ऐसा ही है तो पार्टियों में सिर्फ औपचारिकता वाली, नाममात्र वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था है। 

क्या क्षेत्र विशेष किसी जाति धर्म की बापोती बन चुका है! साहब फला जाति के अलावा कोई नया चेहरा आ गया तो सीट तो गई ..... 

क्या पुराने चेहरों से सब खुश है!! नही तो फिर नए आने दो ना नए लोग आएंगे नया आयाम लिखेंगें, नया इतिहास बनायेंगे।

 लोगो द्वारा आम चर्चा में कहाँ जा रहा है......

अचानक से नए नए चेहरे होर्डिंग/बेनर के माध्यम से दिख रहे हैं सोशल मीडिया के द्वारा दिख रहे हैं। चुनावी मौसम आते ही बिलो से बाहर निकल रहे हैं तो भाई निकलने दो लोकतंत्र है, संवैधानिक देश है सबको हक है,अधिकार है, खुद को स्थापित करने का राजनीति में अपना दमखम दिखाने का भविष्य बनाने का...... अभी तो रेस में सब दौड़ सकते है दौड़ने दो क्या दिक्कत है। दावेदारों की बाढ़ आ रही है तो आने दो, बाढ़ नियंत्रण एवं प्रबंधन की व्यवस्था का जिम्मा पार्टियों का है वे कुशल प्रबंधन करना बखूबी जानते है।

नए चहरे तो चुनावी मौसम में ही आयेंगे , राजनीति की अखाड़े में कूदने आये तो कूदने दो जो पुराने है चुनावी मौसम से पूर्व से ही उछल कूद कर रहे है उन्होंने कोनसा तीर मार लिया ऐसी कोनसी विकास की गंगा बहा दी।

जनता को बगलाकर मुख्य मुद्दों को भटकाने के सिवा करते क्या है सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां अलग अलग चूल्हों पर सेकते रहते है।

नया जमाना है नई सोच है तो नया सोचिए नया जरूर मिलेगा!

दावेदार युवा हो या वरिष्ठ, सोच नई होनी चाहिए, नई सोच होगी तो बेशक मजेदार और लाजवाब होगी।

अंततः यही कहूंगा जिसने पिछले 5 सालों में क्षेत्र में रहकर समाज सेवा में अग्रणी रहकर खून पसीना बहाया हो तन मन धन से समाज सेवा की हो वो प्रबल दावेदार होगा..... बिल्कुल नही जी......😉🤨🤨

पार्टियों में दावेदार वो होगा जो हाईकमान की नजर में प्रचंड वोट से जीत हासिल करने हेतु सारे साम दाम दंड भेद में निपुण हो ऐसे महानुभाव को आशीर्वाद प्रदान किया जायेगा।

इसलिए कभी कभी चुनावी मौसम के दिनों में बिल से निकलने वाले नए चेहरे भी सितम ढा सकते हैं।

उक्त लेख में प्रयुक्त विचार मेरे निजी है।

लेख पर प्रतिक्रिया दीजिये, लाइक एवं शेयर भी कीजिये।

धन्यवाद🙏🙏
Dilip Kumar Udai
(B.J. & LL.B.)
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