08 अक्टूबर 2023
✍दिलीप कुमार उदय
जाति जनगणना उचित या अनुचित ?
जातिगत जनगणना से केंद्र सरकार विरोध में क्यों है, डर किस बात का ?
जाति जनगणना से सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक स्थिति का भी आंकलन होगा!
जितनी आबादी उतना हक, इससे साफ है कि वो देशवासियों में आपसी खाई और वैर-भाव बढ़ाना चाहती है। गरीब ही सबसे बड़ी जाति और सबसे बड़ी आबादी है - पीएम नरेंद्र मोदी
कांग्रेस पार्टी अगर केंद्र की सत्ता में आई तो देश में भर में ओ.बी.सी. के लोगों की सटीक संख्या का पता लगाने के लिए कास्ट सेंसस कराया जाएगा, "अब वह समय आ गया है कि हमें हिंदुस्तान का एक्स-रे करना है." - राहुल गांधी
राहुल गांधी ने यह भी कहा - पता लगाना है कि अगर 90 अफसर देश को चला रहे हैं और उसमें ओबीसी की भागीदारी 5 फ़ीसदी है तो क्या ओबीसी की आबादी 5 फीसदी है? देश में एक ही मुद्दा है जातिगत जनगणना ओबीसी कितने हैं और उनकी भागीदारी कितनी होनी चाहिए?
जनगणना कराने का प्रावधान केंद्र के पास है जनगणना केंद्र सरकार ही करवा सकती है इसलिए राजस्थान में जातिगत जनगणना नही सर्वे करवाया जायेगा - अशोक गहलोत
चुनाव से पूर्व राजस्थान के माननीय मुख़्यमंत्री श्री अशोक गहलोत का एक और पैंतरा बिहार की तर्ज पर राजस्थान में भी होगा जातिगत जनगणना का सर्वे, जनगणना के आंकड़ों के आधार पर भागीदारी सुनिश्चित करने की बात कही जा रही है।
सबसे पहले जान लेते हे जनगणना की कुण्डली :-
वर्ष 1881 औपनिवेशिक काल (भारत में अंग्रेज़ों के शासन काल) के दौरान भारत में जनगणना की शुरुआत हुई थी तब से लेकर अभी तक 16 (सोलहवीं ) जनगणना 2021 में पूर्ण होने वाली थी परन्तु कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण इस जनगणना को स्थगित कर दिया गया था।
जनगणना से अभिप्राय यह है की एक सुपरिभाषित हिस्से के सभी व्यक्तियों के एक विशिष्ट समय पर जनसांख्यिकीय, आर्थिक और सामाजिक आंकड़े (डेटा) एकत्र करना , उसका संकलन करना, विश्लेषण करना और उसे प्रसारित करना होता है साथ ही यह जनसंख्या की विशेषताओं पर भी पेनी नजर डालना है।
Socio-Economic and Caste Census- SECC सामाजिक-आर्थिक और जाति-जनगणना देश में पहली बार वर्ष 1931 में हुई थी उसके बाद जाति-जनगणना पहली बार वर्ष 2011 में आयोजित की गई थी हालांकि 2011 से लेकर 2023 के अंतिम पड़ाव तक भी जाति-जनगणना वर्ष 2011 के आँकडो के बड़े अंश (भाग ) प्रकाशित नहीं किये गए हैं।
SECC का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक भारतीय परिवार (ग्रामीण और शहरी) से उनकी आर्थिक स्थिति एवं उसकी विशिष्ट जाति का नाम पूछकर आँकड़े एकत्रित करना था । आर्थिक स्थिति से यह आंकलन लगाना ताकि पुनर्मूल्यांकन करने में सहायता मिल सके की कोन व्यक्ति गरीब या वंचित है उन्हें नामित किया जा सके साथ ही कौन-सी जाति समूह आर्थिक रूप से पिछड़े थे और कौन से बेहतर थे राज्यों को सहायता कैसे वितरित की जाए, परिसीमन प्रक्रिया कैसे की जाए एवं संसाधनों की दशा और दिशा की रूपरेखा का निर्माण किस प्रकार किया जायेगा कैसे क्रियान्वन होगा मोठे तोर पर यही उद्देश्य होता है।
SECC और जनगणना के बीच का फेर समझना होगा - SECC राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता के लाभार्थियों की पहचान करने की एक विधि या उपकरण है जबकि जनगणना भारतीय जनसंख्या का एक मानचित्र पेश करती है।
जातिगत जनगणना की मांग बरसों से है यह कोई नई मांग नहीं है पक्ष और विपक्ष के राजनितिक दलों ने जाति जनगणना कराने की मांग लगातार उठाई है विपक्ष के साथ साथ एनडीए के भी कई सहयोगी दल भी राष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग करते आये है और कर रहे हैं। बिहार ने इस मांग को पूरा करने के लिए सर्वे की प्रक्रिया को पूर्ण करके जातिगत जनगणना के सर्वे आंकड़े सार्वजनिक कर दिए है इस पर केंद्र सरकार का विरोध बरक़रार है मालूम हो की 2018 में, तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ओबीसी और एसईबीसी की पहचान के लिए जाति-आधारित सर्वेक्षण का वादा किया था। अब बीजेपी इसका विरोध कर रही है ? बीजेपी का नारा है - 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' तो वह इस नारे से दूर क्यों भाग रही है ?”
बिहार में जाति जनगणना को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में जाति सर्वेक्षण आंकड़े प्रकाशित करने पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा की वह राज्य द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय पर रोक नहीं लगाई जा सकती
मेरा स्पष्ट मानना है कि जातिगत जनगणना एक उचित मांग है
भारत में जाति जनगणना कराने की मांग राजनीतिक दलों एवं सामाजिक चिंतकों ने भी उठाई है इनके साथ साथ ओ.बी.सी. समाज द्वारा भी यह मांग बार बार उठाई गई हे इस मांग का सबसे प्रभावपूर्ण कारण आरक्षण है। देश में आरक्षण को लेकर दो बड़े संशोधन - पहला EWS आरक्षण और दूसरा राज्यों को ओ.बी.सी. वर्ग की पहचान करने का अधिकार इन दोनों संशोधनों ने जातिगत जनगणना की मांग को गति प्रदान की है। जातिगत जनगणना से राज्य अपने स्तर पर ओ.बी.सी. वर्ग की पहचान सुनिश्चित कर उसी अनुपात में उन्हें आरक्षण का लाभ प्रदान करने में सक्षम होगा और मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले से भी गति मिली हे फैसले में कहा गया हे की जाति जनगणना राज्य का विशेषाधिकार है राज्य के लिए आवश्यक है।
राज्य के नीति-निर्माण में सामाजिक वर्ग की वास्तविक स्थिति का पता ही नहीं होगा तो उनका उत्थान कैसे संभव हो पाएगा? वंचित वर्ग को मुख्यधारा में लेकर आने के लिए उनकी वास्तविक स्थिति, संख्या, सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक स्थिति के अध्ययन करने के बाद ही मुख्यधारा में क्रियान्वित किया जा सकता है।
सबका साथ-सबका विकास,सबका विश्वास-सबका प्रयास की संकल्पना से देश सही मायनों में विकसित एवं सफल राष्ट्र तब बन पायेगा जब समाज के सभी वर्गों का कल्याण सुनिश्चित किया जायेगा
संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण में व्यापक रूप से असमानता हे तो इस असमानता को समाप्त करने हेतु वंचितों की गणना करना न्यायोचित निर्णय है।
जाति जनगणना देश में जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा देगी यह कहना अनुचित होगा , भारत की राजनीति में जाति का बहुत ही प्रबल प्रभाव बरसो से चला आ रहा और आगामी वर्षो में यह बरकरा रहने जैसा ही प्रतीत हो रहा है।
जनता के सामने मुख्य मीडिया संस्थानों द्वारा जातिगत जनगणना को लेकर स्पष्ट रुख नहीं रखा जा रहा है इस मुद्दे पर राजनीति करते हुए हिन्दू धर्म की और धकेल कर विरोधाभास खड़ा किया जा रहा है सोशल मीडिया में चर्चा की जा रही हे की यह हिन्दुओ को बाटने और आपस में फुट डालने जैसा आत्मघाती कदम है जबकि हकीकत एवं सच्चाई सिरे से बिलकुल अलग है इसके लिए तथ्यात्मक रूप से समझने की आवश्यकता है।
जब विभिन्न समुदाय एवं समाज अपने अपने जातिगत महासम्मेलन आयोजित करती है इन तमाम आयोजनों में पार्टी विचारधारा को परे करते हुए तमाम पार्टी के नेतागण एवं सामजसेवी स्वयं की जाती का उत्थान करने हेतु अपनी जाति के लिए सामाजिक, शैक्षिक व आर्थिक एवं राजनितिक भागीदारी की हुंकार बड़े जोर शोर से करते है जाति के नाम पर किसी भी हद तक जाने को तत्पर रहते हे यदि ऐसा करना उनका उचित कदम एवं अधिकार हे तो जब यही कार्य बिहार एवं राजस्थान की सरकार द्वारा जाति जनगणना सर्वे के माध्यम से सबका विकास सबका कल्याण करते हुए जाति अनुपात के माध्यम से व्याप्त विसंगतियों को दूर करते हुए सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाकर किया जाने वाला कदम हे तो यह कदम गलत कैसे हो सकता हे यह तो सटीक रूप से उचित कदम और उचित फैसला है।
जाति जनगणना सर्वे से प्राप्त आंकडो के संग्रह (डेटा क्लेक्शन) से योजनाओं का बेहतर इंप्लीमेंटेशन (क्रियान्वन) होगा ऐसा मेरा मानना है।
जाति जनगणना जातिविहीन समाज के लक्ष्य के लिये भले ही अनुकूल न हो लेकिन यह समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने में कारगर रूप से सही साबित हो सकती है।
लेख में व्यक्त विचार मेरे निजी है
धन्यवाद🙏🙏
(Bachelor of Journalism & LL.B.)
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