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Wednesday, May 6, 2020

#04 The Udai
व्यंग्यात्मक अल्फाज प्रस्तुत है......

कोरोना त्रासदी में मध्यमवर्गीय परिवार का जीर्णोद्धार होगा??

🔏  दिलीप कुमार उदय

इस कोरोना त्रासदी से होने वाले परिदृश्य की विवेचना विश्लेषण को व्यंग्यात्मक तरीके से थोड़ा सा समझने की कोशिश करते है :-

वर्ष 2020 इस साल मे कोरोना वायरस की त्रासदी ने पूरी दुनिया के लोगो को घरों में बंद कर दिया हैं। सामाजिक प्राणी को सामाजिक दूरी का पाठ पढ़ा दिया गया है। इस कोरोना त्रासदी ने ऐसा कोहराम मचाया है जिसने सारी मानव जाति को लपेटे में ले लिया है। सभी लोग इस संकट के दौर में संघर्षरत है। मजदूर से लेकर उद्योगपति तक और आम से खास तक तमाम लोगो को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक,  धार्मिक आदि क्रियाकलाप करने के तौरतरीकों के नए विकल्प तलाशने पड़ेंगे!

अपना भारत विभिन्न संस्कृति, धर्म, नस्ल, भाषा का देश है और यही हमारी विविधता में एकता है। जो हमे भारतीय कहलाने का गौरव प्रदान करती है। प्रायः भारतीय समाज को निम्न तीन वर्गों में बांटा जाकर देखा जाता है।
1 उच्च वर्ग
2 मध्यम वर्ग
3 निम्न वर्ग
इस कोरोना त्रासदी ने इन तीनो वर्गों को ऐसी चोट (घाव,जख्म) दिया है जिस पर मरहम का फिलहाल कोई खास असर दिखाई नही पड़ रहा है। जबकि उच्च वर्ग के पास जो आर्थिक साम्राज्य है उसमें से वह अपने सामाजिक, राजनीतिक हितार्थ ओर पहुंच से वह अपने स्तर से मरहम बना लेगा और इस कोरोना त्रासदी वाले घाव का उपचार भी कर लेगा।

परन्तु मध्यमवर्गीय परिवार और निम्नवर्गीय परिवार पर यह कोरोना त्रासदी वाला जो घाव है, बहुत गहरा, दुखदाई है इस घाव पर दोनों वर्ग कितनी भी मरहम लगा ले यह धीरे धीरे समय लगाएगा सब कुछ ठीकठाक होने में क्योकि इनके पास उच्च वर्ग जैसा आर्थिक साम्राज्य नही है।

त्रासदी,आपदा या कोई भी दौर हो हम सरकारो पर भरोसा,विश्वास और उम्मीद लगाए इसी आशा में रहते है कि सरकार मध्यवर्गीय  परिवार के लोगो के लिए इस बार तो कुछ बेहतर करेगी परन्तु हर बार की तरह छलावा, बेबसी ओर निराशा ही नजर आती दिख रही है।

इस बेबसी, निराशा और छलावे के बावजूद मध्यमवर्गीय परिवार के पालनहार आशावादी छवि के कारण सेतु के रूप में तटस्थ, अडिग और निर्भीक खड़े है जिसकी नीव ओर स्तम्भ बहुत शक्तिशाली तो है लेकिन साथ ही समय समय पर मरम्मत और रखरखाव की भी परम आवश्यकता पड़ती रहती है। मध्यमवर्गीय सेतु पर जो मार्ग है यह आवक जावक का व्यस्तम मार्ग है इस मार्ग पर सरकारे ओर जनप्रीतिनिधि आदि लोग बड़ी रफ्तार से निकलते हैं। इनकी रफ्तार केवल चुनावी मौसम में जरूर थोड़ी धीमी होती है, तब यह लोग मार्ग पर रुकना पसंद करते है और विकास की गंगा बहा देने का आश्वासन देकर चलते बनते है। फिर से आएंगे और विकास की गंगा बहायेंगे तब तक 5 वर्ष पूर्ण हो जाते है।

ऐसा नही है कि सरकार कुछ नही कर रही है कर रही है बहुत कुछ कर रही है करोड़ो रूपये के राहत की घोषणा के साथ उसका कुछ प्रतिशत खर्च भी कर रही है जो निम्न वर्ग के कुछ तबके तक राहत भी प्रदान कर रहा है जो उनके लिए भी नाकाफी है।

कोरोना राहत पैकेज और सहायता के नाम पर सभी सरकारे ढिंढोरा पिट कर अपनी अपनी पीठ थपथपा रहे है, सोशल मीडिया के सहयोग से एवं पार्टी के नुमाइंदों और आईटी सेल से भविष्य की चुनावी चौसर वाली राजनीति को मजबूत करने में लगे हुए है। खेर यह सब तो होता रहेगा इनके बिना इनकी गाड़ी आगे सरकती भी नही है।

उक्त व्यंग्यात्मक लेख से सरकार से सिर्फ इतनी सी गुजारिश है कि मध्यम वर्गीय परिवार जिसे मिडलक्लास कहा जाता है उनका भी जीर्णोद्धार करने का श्रम करे ताकि इस मिडिल क्लास की हाइक्लास तक पहुँचने की लालसा बरकरार रह सके।

एक छोटी सी गुजारिश :-
सोशल डिस्टेंसिंग.....
भविष्य में यह अवधारणा बरक़रार न रहे और न ही मजबूत हो इसलिए मेरा यह निजी विचार हे की हमें सोशल डिस्टेंसिंग की जगह फिजिकल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए!

स्वस्थ रहिये। फिलहाल घर मे व्यस्त रहिये। मस्त रहिये।

उपरोक्त व्यंग्यात्मक लेख मेरे निजी विचार है।

धन्यवाद
Dilip Kumar Udai
"The Udai"
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