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Wednesday, June 30, 2021

पुष्कर के नवीन हॉस्पिटल प्रकरण पर वंग्यात्मक अल्फाज


#TheUdai-19
30 Jun 2021

पुष्कर के नवीन हॉस्पिटल प्रकरण पर वंग्यात्मक अल्फाज प्रस्तुत है

#TheUdai-19

30 Jun 2021

पुष्कर के नवीन हॉस्पिटल प्रकरण पर वंग्यात्मक अल्फाज प्रस्तुत है

✍️ दिलीप कुमार उदय

राज्य सरकार द्वारा धार्मिक एवं पर्यटक नगरी पुष्कर एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की सुविधार्थ नवीन हॉस्पिटल की सौगात प्रदान की गई है। उसके लिये सरकार का धन्यवाद।🙏🙏

पिछले 1-2 माह से नवीन हॉस्पिटल निर्माण को लेकर भूमि आवंटन के समर्थन और विरोध में ज्ञापनों की बौछार और सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक रोज कुछ न कुछ गर्मजोशी से भूमि विरोध को लेकर ज्यादा खबरे प्रेषित हो रही है इन खबरों को मीडिया बखूबी कवरेज भी कर रहा है।

सारे विरोध, किंतु -परन्तु, आदि को दरकिनार करते हुए खरेखडी मार्ग पुष्कर पर नवीन हॉस्पिटल निर्माण हेतु आवश्यक प्रशासनिक एवं सरकारी आदेशानुसार कार्यवाही को अंजाम दे दिया गया है। जल्द ही निर्माण प्रक्रिया शुरू होने की कगार पर है।

उक्त नवीन हॉस्पिटल भूमि आवंटन को लेकर उपजे विवाद पर रुख/नजरिये को टटोलने का थोड़ा सा प्रयास करते है.........

🧐🧐

1. जनता का रुख:- 

पुष्कर की अधिकांश जनता असमंजस (कंफ्यूज) में रहती है। खुलकर विरोध या समर्थन की बात परोक्ष रूप से नही करती है। 

पक्ष और विपक्ष के जनप्रतिनिधियो/टीम लीडर द्वारा जनता को जैसे कोई हिलोरे खिलाये वैसे खा लेते है, झूम लेते है। पुष्कर की जनता इसी तर्ज से चिंतित होती है।

असल मे पुष्कर सरोवर को लेकर पुष्करवासी और जनप्रतिनिधि कितने चिंतित व्यथित है स्वयं अपनी अंतरात्मा से पूछ सकते है।

जनता को पिछले 1-2 माह से विभिन्न सूचना तंत्रों (अख़बार, सोशल मीडिया आदि) द्वारा यह अहसास दिला दिया गया है कि यह मुद्दा पुष्कर सरोवर, राजनीतिक प्रतिष्ठा, गुटबाजी, भू -कारोबारी व्यवसायिक नजरिये वाला है, शायद इसलिए यह मामला इतना तूल पकड़ता गया है। वैसे किसी भी मुद्दे को किस करवट मोड़ना है यह मीडिया एवं राजनीतिज्ञ बखूबी जानते है। 

2. जनप्रतिनिधियो का रुख:-

पुष्कर नगरी के विकास हेतु बहुत अधिक चिंतित रहते है। इनकी तो बात ही निराली है यह चाहे तो पुष्कर की हवा का रुख बदल दे!! 🤨🤨

कहने को तो जनप्रतिनिधि होते है असल मे पार्टीप्रतिनिधि होते है।😉😉 

खेर इनकी अपनी मजबूरी इनके हाथ राजनीतिक पार्टियों ने बांध रखे है। 

( राजा बोला रात है

रानी बोली रात है

मंत्री बोला रात है

संतरी बोला रात है

सब बोले रात है


यह सुबह सुबह की बात है...)🤔🤔

इसी तर्ज पर राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष नेताओं की अनुपालना में कटिबद्ध रहते है। 

आप गलत न समझे देखिए शीर्ष नेता है तो सही निर्णय ही लिया होगा ना उसी तर्ज पर कटिबद्ध रहते है। 😊😊

प्रायः जनप्रतिनिधि टीम के जो सदस्य होते है वे वर्तमान और भविष्य में होने वाली राजनीतिक नियुक्ति एवं भागीदारी के लिए अपने शीर्षस्थ नेताओं के एक इशारे या आश्वासन पर यह अपना रुख तय करके चिंतित होते है।

यदि स्थानीय निकाय और राज्य में विपरीत पार्टियां नेतृत्व में होती है तब स्थानीय सत्तारूढ़ पार्टी अपनी दाल अच्छे से नही गला पाती है........तो इसके आगे की बात आप समझ सकते है!

🙂🙂 यह नेतृत्व उसी हिसाब से चिंतित रहता है।

3. प्रशासन का  रुख 

इनका तो मिजाज बड़ा ही निराला है साहब यह सरकार के आदेश की पालना में पलक पाँवड़े बिछाए रहते हैं। इधर आदेश उधर कार्यवाही खेर यह एक अलग विषय है कि आदेश की पालना में कार्यवाही तुरंत प्रभाव से करनी है या फिर...........आप समझ गए होंगे। 

वैसे इनका रुख जबरदस्त होता है ....बनी बनाई हवा का रुख मोड़ने का दमखम रखते है। क्योकि इनके पास नियमावली का बस्ता भरा हुआ है। बस्ते का प्रयोग कब कैसे किस तरह करना है यह बखूबी जानते है। 📖🔍🖋️  यह जनता के हित हेतु पुष्कर नगरी को लेकर सदैव चिंतित रहते है!!


4.व्यवसायी नजरिये वाले लोगो का रुख

इनका प्रथम उद्देश्य प्रोफिट (लाभ) अर्जित करना है इनको जहां लाभ नजर आएगा उसी अनुरूप समर्थन या विरोध का तालमेल बिठाकर दोनों हाथों में लड्डू लेने की फिराक में रहते हैं।उसी तर्ज पर यह पुष्कर नगरी के लिए चिंतित रहते है।

5. सामाजिक संगठनो का रुख :- सामाजिक संगठन

 समाज के लिए बेहतर कार्य करते है परंतु अक्सर इनके पीछे अदृश्य रूप से एवं प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक और आर्थिक ताकतो का समर्थन मौजूद रहता है। यह इनके मुताबिक संगठन

हितार्थ अपना रुख मोड़ लेते है या थाम लेते है। उसी तर्ज से यह भी पुष्कर नगरी के लिए बहुत चिंतित है।

 6. सामाजिक कार्यकर्ताओं का रुख:-समाज सेवा और सहायता में इनका योगदान भी अहम होता है परंतु सामाजिक कार्यकर्ता स्वयं को वर्तमान एवं भावी राजनीति में अहम हिस्सेदारी की मंशा सदैव रखता है इसमें कोई शक या अतिशयोक्ति नही है। सामाजिक कार्यकर्ता बनने की पीछे मूल भावना सामाजिक सेवा के साथ साथ राजनीतिक पद या प्रतिष्ठित पद प्राप्त करना इनके उद्देश्य में निहित होता है तो यह अपना रुख समर्थित जनता की भावनाओ और मौजूदा परिस्थितियों को भाप कर अपना रुख तय कर लेते है।

यह सर्वाधिक रूप से पुष्कर नगरी हेतु चिंतित रहते है।

उपरोक्त बताये गए रुख अनुरूप आप समझ सकते है कौन किस रुख मुताबिक...... पुष्कर नगरी हेतु चिंतित है।

वैसे लोकतंत्र व्यवस्था में किसी विषय पर असहमति/विरोध या समर्थन करने का उचित अधिकार संविधान ने सभी लोगो को प्रदान किया है। इस पूरे घटनाक्रम में पुष्कर के आसपास के सभी गांव एवं पुष्कर कस्बे के सभी जनप्रतिनिधियों से लेकर अनेक 

संगठन एवं कार्यकर्ताओ ने हिस्सा लेकर ज्ञापन,आपत्तियां, विरोध एवं समर्थन आदि के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई परन्तु इन सबमे सर्वाधिक चर्चा सामाजिक कार्यकर्ता अरुण जी पाराशर एवं रवि बाबा पार्षद के विरोध की रही है। मीडिया ने भी इनको भरपूर तरिके से कवरेज प्रदान किया है।

सामाजिक कार्यकर्ता अरुण जी पाराशर ने भूमि आवंटन विरोध के लिए प्रयुक्त हो सकने वाले महत्वपूर्ण दस्तावेज, RTI दस्तावेज, पत्र, नक्शे, न्यायालय फैसले आदि एवं अपने तर्को को सोशल मीडिया पर लगातार प्रस्तुत कर रहे है इसलिए लोगो मे इस मुद्दे को लेकर बहुत चर्चित हो रहे है।

दूसरी और समर्थन करने वालो का कुनबा बहुत बड़ा है कुछ जनप्रतिनिधियों को छोड़कर कांग्रेस और भाजपा के सभी जनप्रतिनिधि खरेखडी रोड पर बनने वाले हॉस्पिटल पर सहमति प्रदान कर चुके है।

इस तमाम प्रकरण एवं अन्य  माध्यम से एवं सुनने में आया है की कांग्रेस के वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र जी राठौड़ का पुष्कर की राजनीति में नया प्रवेश हो गया है। नवीन हॉस्पिटल भूमि आवंटन से लेकर निर्माण तक कि कार्यवाही में इनका अहम योगदान बताया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी में दमखम एवं मुख्यमंत्री तक अपना संवाद तुरंत प्रभाव से पहुचाँने का दम रखते है।

उक्त लेख में प्रयुक्त विचार/अल्फाज मेरे निजी है।


धन्यवाद🙏🙏

✍️

Dilip Kumar Udai
B.J., B.A., M.A.
Independent Journalist,
IT Professional &
Entrepreneur

The Udai News
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Thursday, June 3, 2021

पुष्कर में अव्यवस्थित भूमिगत विधुत केबल और उधड़ी सड़के।

#Theudai18
03-06-2021
ओब्लाइज
😷😷😷👇

पुष्कर में अव्यवस्थित भूमिगत विधुत केबल और उधड़ी सड़के।
दिलीप कुमार उदय
✍️
पुष्कर में व्याप्त अव्यवस्था पर व्यंग्यात्मक अल्फाज पेश है:-
पुष्कर में अव्यवस्थित बेतरीब, अकुशल तरीके से सड़को पर एवं संकरी गलियों मे भूमिगत विधुत केबल को जगह -जगह पर ऐसे ही खुला छोड़ रखा है। केबल के गुच्छे नालियों में पडे हुए है। आधे अधूरे अव्यवस्थित तरीके से केबल को घरों पर लगे मीटर तक छोड़ दिया गया है। अव्यवस्थित भूमिगत केबल हादसे के लिए खुला निमंत्रण दे रही है फिर भी.........
पुष्कर के जनप्रतिनिधि - सत्ता पक्ष एवं विपक्ष और जिम्मेदार प्रशासन सबने चुप्पी साध रखी है। 😷😷
सच को सच कहने में सार्वजनिक रूप से लोग भी हिचकिचा रहे है जनता के हित से बढ़कर राजनीतिक पार्टी और व्यवसायिक नजरिये वाली विचारधारा को महत्ता दी जा रही है।
पुष्कर के हर क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले पक्ष और विपक्ष के शीर्ष नेता अपना स्वयं का प्रचार प्रसार करवाके ढोल पीटने में लगे हुए है। विकास के नाम पर ज्ञापनो और पत्रों की बौछार करके सोशल मीडिया में सुर्खिया बटोरकर अपना कद बढ़ाने में लगे हुए है। असल मुद्दे असल परेशानी क्या है उसका कोई सरोकार नही है।
अभी हाल ही में पुष्कर में बनने वाले हॉस्पिटल के लिए चिन्हित भूमि को लेकर बड़ा जोर शोर से तकरार करके प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से विरोध की गूंज को सरकार के कान तक पहुचाँने का कार्य किया गया था उसका परिणाम क्या होगा वो एक अलग बात है एक अलग विषय है!! पर विरोध तो किया गया .........
क्या ऐसा ही विरोध ... अव्यवस्थित भूमिगत विधुत केबल को दूरस्त एवं सुरक्षित करने के लिए नही किया जा सकता???
जागरूक तबके को यह सोचना होगा कि केवल नाराजगी एवं खेद प्रकट करके इतिश्री करने से कुछ नही होगा, एक्शन लीजिये।
पिछले दिनों अव्यवस्थित भूमिगत केबल की चपेट में आने से दो गायों की मौत हो गई थी। उक्त अव्यवस्था के संदर्भ में गो सेवकों ने एसडीएम साहब को ज्ञापन भी दिया था। यह लोग धन्यवाद के पात्र है। प्रशासन को जगाया तो सही आखिर, जिसकी जानकारी समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में प्रकाशित भी हुई थी।
पुष्कर के हर गली मोहल्ले की तंग सड़के सब उधड़ी पड़ी है, नई तो बनने से रही मरम्मत को ही तरस रही है। यह सड़के भूमिगत विधुत केबल के लिए खोद दी गई विधुत केबल डालने एवं घरों पर लगे मीटर तक केबल लगाने के सरकारी टेंडर में तय नियम कायदे कानून को साइड में रखकर मनमर्जी से अव्यवस्थित, अकुशल तरीके से धीमी गति से कार्य को अंजाम दिया जा रहा है।
उक्त समस्या को लेकर जिम्मेदार लोगों का चुपचाप मोन रहना क्या संकेत देता है??
संकेत :- शायद ओब्लाइज कुनबा आपस मे एक दूसरे को ओब्लाइज कर रहा है, इसके आगे की गणित एवं कहानी जनता स्वयं समझ जाएं।
कुछ फोटो भी सलंग्न पेश कर रहा हूँ , फ़ोटो में जो दृश्य है ऐसा ही दृश्य पुष्कर के अन्य जगहों पर भी देखने को मिल जाएगा।
धन्यवाद।🙏
लेख में प्रयुक्त विचार मेरे निजी है।
✍️
Dilip Kumar Udai
B.J., B.A., M.A.
Independent Journalist,
IT Professional &
Entrepreneur

Wednesday, June 2, 2021

ऑब्लाइज

TheUdai -17
02-06-2021
*ओब्लाइज*

*दिलीप कुमार उदय*
✍️
चलो आज *ओब्लाइज* पर कुछ व्यंग्यात्मक अल्फाज पेश करते है:-

ओब्लाइज (Oblige) जिसका हिंदी में भावार्थ है :- *उपकृत (एहसानमंद, कृतज्ञ), आभारी, अनुगृहित आदि* हिंदी वाला रहने देते है, इंग्लिश वाला ही प्रयुक्त कर लेते है यह कुछ ज्यादा प्रचलन में है - *ओब्लाइज*

गांव, कस्बे, शहर, प्रदेश क्या पूरे देश में यह शब्द बहुत ही प्रचलित है यह एक ऐसा शब्द है जिसके द्वारा बरसो से रुके काम हो या अन्य कोई जटिल या सामान्य कार्य हो, किसी योजना, सेवा आदि का तुरंत लाभ प्राप्त करना हो या लागू करना हो आदि आदि.......इन सबके लिए *ओब्लाइज एक ऐसा शब्द है जिसमे इतनी ताकत है की सारे अटके एवं मनमर्जी वाले कार्य तुरंत प्रभाव से हो जाते है।* बशर्ते ऑब्लाइज होने और करने वाली पोजिशन की केटेगरी में आप आते हो तो यह ताकत बखूबी काम करती है।

जब हम चारो और नजरे दौड़ाते है देखते है तो ऐसा *प्रतीत होता है कि प्रभावशाली ऑब्लाइज कुनबा बड़े प्यार और ठाट से आपस मे एक दूसरे को अपने -अपने क्षेत्र अनुरूप ओब्लाइज करते है।* देर सवेर इन सभी को आपस मे बहुत काम पड़ता रहता है ....एक दूसरे से!! क्योकि  *पता नही किसने किसकी किस तरह नब्ज दबा रखी है* नब्ज छोड़ते ही ऑक्सिजन का प्रवाह कम हो जाता है ऒर ऑक्सीजन की कमी से क्या हो जाता है, सब जानते हो कितना भयंकर है।

*कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार के माध्यम से आमजन (जनता) तक पहुँचने वाली सेवायें/ योजनाए आदि के तय नियम जिससे सरकार एवं जनता के मध्य विश्वाश ओर समर्थन की कड़ी जुड़ी होती है उस कड़ी को तोड़ने -मरोड़ने ओर मसलने का कृत्य ऑब्लाइज कुनबा अपने मुताबिक नियमो  की अवहेलना करके, जनता को अंगूठा दिखा कर, जनता को यह अहसास दिलाते है कि हमे ओब्लाइज करना पड़ता है! क्या करे ??*

अब आप सोच रहे होंगे कि ऑब्लाइज कुनबा क्या बला है तो आप थोडा सा दिमाग पर जोर लगाए आपको पता चल जाएगा कि यह ऑब्लाइज कुनबा कोंन है......????

*यदि आप खास प्रभावशाली ऑब्लाइज कुनबे की श्रेणी में आप आते हो तो ऑब्लाइज कुनबा आमजन (जनता) को साइड में करके आपको पहले प्राथमिकता देगा!!* यह वर्तमान सिस्टम की एक  हकीकत है!!

इस ओब्लाइज के चक्रव्यूह में *आमजन -असहाय, मजबूर, विवश, निराश, हताश* - (जितने भी ऐसे शब्द है उन सभी को स्मरण करते हुए निरन्तर पढ़ सकते है) होकर सबकुछ सहकर आगामी चुनाव की तारीख को टटोलने में लग जाता है कहता फिरता है चुनाव आने दो *मजा चखा दूंगा अब आमजन मजा केवल चुनाव में ही चखा सकता है बाकी समय उसकी इतनी औकात कहाँ है!*

कई बार तो असली हकदार को मिलने वाला लाभ/ सेवा/योजना का हक कोई और पहले प्राप्त करके चला जाता है, इस प्रका से *हक मारना मानवीय मूल्यों के विपरीत है।*

*कलम की ताकत से सच का दृश्य दिखाने पर तिलमिलाहट तो मचेगी, गुस्सा भी आएगा। तिलमिलाहट और गुस्से का जवाब कलम से प्रस्तुत होता रहेगा :-*

उक्त व्यंग्य में कही गई बात मौजूदा सिस्टम का हिस्सा बन चुकी है! व्यंग्य के माध्यम से पुनः रिफ्रेश किया गया है। व्यंग्य को कोई भी व्यक्तिगत रूप से न ले, यदि कोई लेना चाहे तो फिर उसकी इच्छा।😊😊 

धन्यवाद।🙏
लेख में प्रयुक्त विचार मेरे निजी है।

✍️
Dilip Kumar Udai
*B.J., B.A., M.A.*
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*The Udai News*
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