TheUdai -17
02-06-2021
*ओब्लाइज*
*दिलीप कुमार उदय*
✍️
चलो आज *ओब्लाइज* पर कुछ व्यंग्यात्मक अल्फाज पेश करते है:-
ओब्लाइज (Oblige) जिसका हिंदी में भावार्थ है :- *उपकृत (एहसानमंद, कृतज्ञ), आभारी, अनुगृहित आदि* हिंदी वाला रहने देते है, इंग्लिश वाला ही प्रयुक्त कर लेते है यह कुछ ज्यादा प्रचलन में है - *ओब्लाइज*
गांव, कस्बे, शहर, प्रदेश क्या पूरे देश में यह शब्द बहुत ही प्रचलित है यह एक ऐसा शब्द है जिसके द्वारा बरसो से रुके काम हो या अन्य कोई जटिल या सामान्य कार्य हो, किसी योजना, सेवा आदि का तुरंत लाभ प्राप्त करना हो या लागू करना हो आदि आदि.......इन सबके लिए *ओब्लाइज एक ऐसा शब्द है जिसमे इतनी ताकत है की सारे अटके एवं मनमर्जी वाले कार्य तुरंत प्रभाव से हो जाते है।* बशर्ते ऑब्लाइज होने और करने वाली पोजिशन की केटेगरी में आप आते हो तो यह ताकत बखूबी काम करती है।
जब हम चारो और नजरे दौड़ाते है देखते है तो ऐसा *प्रतीत होता है कि प्रभावशाली ऑब्लाइज कुनबा बड़े प्यार और ठाट से आपस मे एक दूसरे को अपने -अपने क्षेत्र अनुरूप ओब्लाइज करते है।* देर सवेर इन सभी को आपस मे बहुत काम पड़ता रहता है ....एक दूसरे से!! क्योकि *पता नही किसने किसकी किस तरह नब्ज दबा रखी है* नब्ज छोड़ते ही ऑक्सिजन का प्रवाह कम हो जाता है ऒर ऑक्सीजन की कमी से क्या हो जाता है, सब जानते हो कितना भयंकर है।
*कहने का तात्पर्य यह है कि सरकार के माध्यम से आमजन (जनता) तक पहुँचने वाली सेवायें/ योजनाए आदि के तय नियम जिससे सरकार एवं जनता के मध्य विश्वाश ओर समर्थन की कड़ी जुड़ी होती है उस कड़ी को तोड़ने -मरोड़ने ओर मसलने का कृत्य ऑब्लाइज कुनबा अपने मुताबिक नियमो की अवहेलना करके, जनता को अंगूठा दिखा कर, जनता को यह अहसास दिलाते है कि हमे ओब्लाइज करना पड़ता है! क्या करे ??*
अब आप सोच रहे होंगे कि ऑब्लाइज कुनबा क्या बला है तो आप थोडा सा दिमाग पर जोर लगाए आपको पता चल जाएगा कि यह ऑब्लाइज कुनबा कोंन है......????
*यदि आप खास प्रभावशाली ऑब्लाइज कुनबे की श्रेणी में आप आते हो तो ऑब्लाइज कुनबा आमजन (जनता) को साइड में करके आपको पहले प्राथमिकता देगा!!* यह वर्तमान सिस्टम की एक हकीकत है!!
इस ओब्लाइज के चक्रव्यूह में *आमजन -असहाय, मजबूर, विवश, निराश, हताश* - (जितने भी ऐसे शब्द है उन सभी को स्मरण करते हुए निरन्तर पढ़ सकते है) होकर सबकुछ सहकर आगामी चुनाव की तारीख को टटोलने में लग जाता है कहता फिरता है चुनाव आने दो *मजा चखा दूंगा अब आमजन मजा केवल चुनाव में ही चखा सकता है बाकी समय उसकी इतनी औकात कहाँ है!*
कई बार तो असली हकदार को मिलने वाला लाभ/ सेवा/योजना का हक कोई और पहले प्राप्त करके चला जाता है, इस प्रका से *हक मारना मानवीय मूल्यों के विपरीत है।*
*कलम की ताकत से सच का दृश्य दिखाने पर तिलमिलाहट तो मचेगी, गुस्सा भी आएगा। तिलमिलाहट और गुस्से का जवाब कलम से प्रस्तुत होता रहेगा :-*
उक्त व्यंग्य में कही गई बात मौजूदा सिस्टम का हिस्सा बन चुकी है! व्यंग्य के माध्यम से पुनः रिफ्रेश किया गया है। व्यंग्य को कोई भी व्यक्तिगत रूप से न ले, यदि कोई लेना चाहे तो फिर उसकी इच्छा।😊😊
धन्यवाद।🙏
लेख में प्रयुक्त विचार मेरे निजी है।
✍️
Dilip Kumar Udai
*B.J., B.A., M.A.*
Independent Journalist,
IT Professional &
Entrepreneur
*The Udai News*
Pushkar
9828782469
Blog :- https://dilipudai.blogspot.com
Facebook:- https://www.facebook.com/theudai
Twitter :- https://twitter.com/dilipudai
Youtube : - https://www.youtube.com/theudai
No comments:
Post a Comment